दुर्गा के नौ रूपों को पूजने के साथ साथ स्त्रियों को इसे अपनी जीवन शैली में उतरना ज्यादा आवश्यक है
प्रतिवर्ष दो बार नवरात्रि के नौ दिवसीय महोत्सव के आयोजन को देश में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है स्त्री पुरुष सभी इसे बड़े मनो योग से मनाते हैं।देवी के नौ रूपों की नौ दिवस तक आराधना का यह विशेषपर्व सदियों से अनवरत मनाया जा रहा है लेकिन उसे जीवन में वास्तविक रूप से अपनाया नही जा रहा है।
वर्तमान में आर्थिक ,भौतिक ,तकनीकी संपन्नता के साथ साथ इसमें से सच्ची भक्ति ,आराधना , समर्पण, व्रत उपवास का लोप हो कर उसका स्थान भौतिकता ,आधुनिकता या सीधा सीधा यह कहें की दिखावे ने ले लिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
आज जिस तरह चारों और सिर्फ शोर शराबा, सजने संवरने ,बेहूदे डांस प्रोग्राम ,मंच ,सज्जा , भीड़ भाड़ और लाखों रुपयों का खर्च किया जा रहा है और इन्ही सब प्रपंचों को देवी की आराधना मान कर प्रचारित किया जा रहा है तो यह एक विचारणीय बिंदु है की क्या वास्तव में दुर्गा शक्ति रूपा की यह सच्ची आराधना है???
और इस दिखावे वाले प्रपंच में स्त्रियों का बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना भी एक विचारणीय बिंदु बन गया है?
जब प्राचीन समय में इस उत्सव का प्रारंभ हुआ होगा तो अवश्यंभावी है की इसका उद्देश्य स्त्री के विभिन्न रूपों की शक्ति के अहसास को जागृत करना ही होगा और उसके विभिन्न पक्षों को स्वीकार करते हुए सम्मान देना ही होगा यानी प्राचीन काल में स्त्री को शक्ति स्वरूपा ,सर्व गुण संपन्न , और सभी में श्रेष्ठ माना गया था और उसे दर्शाने का यह सरल प्रयास रहा होगा ।
यह पर्व स्वयं ही दर्शाता है की स्त्री जिसे देवी शक्ति का दर्जा दिया गया वो स्वयं में कितनी शक्ति शाली है और प्रकृति के निर्बाध संचालन में उसकी कितनी महत्ता है।
आज स्त्रियों द्वारा इस अवसर पर दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना तो की जाती है लेकिन उसे समझने का , जानने और स्वयं के जीवन में उसी स्वरूप यानी स्वयं को शक्ति रूपा बनाने का कोई प्रयास नहीं किया जा ता है
और वर्तमान स्त्री जाति जो भौतिकता में ज्यादा लिप्त है वह तो बिलकुल भी नहीं करती है।
दुर्गा के विभिन्न रूप जैसे : शैल पुत्री रूप यानी इच्छा शक्ति और आत्मबल से भरपूर स्त्री रूप ,,
ब्रह्म चारिणी यानी तप ,ताप ,संयम से भरपूर
चंद्र घंटा यानी निर्भया, निडररू
कुष्मांडा यानी बुद्धि जीवी, ज्ञान का भंडार रूप
स्कन्द माता यानी संतानों की रक्षक स्त्री रूपा
काल रात्रि सभी बाधाओं की नाशक
महा गौरी यानी सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान देने वाली दुर्गा
और नवीं शक्ति रूपा सिद्धिदात्री यानी सर्व शक्ति शाली रूप
इन विभिन्न रूपों में स्त्री को देवी का स्वरूप स्वीकार कर के सम्पूर्ण राष्ट्र में लगातार पूजा जा रहा है और सदियों से पूजा जा रहा है लेकिन वास्तविक जीवन में स्त्री को इन रूप में कोई भी स्वीकार नहीं कर रहा है और न ही इस प्रकार विकसित होने हेतु प्रेरित किया जा रहा है और स्त्री भी स्त्री को इस रूप में न तो स्वीकार कर रही है ना ही इस तरह बनने का प्रयास कर रही है।
वर्तमान वास्तविकता इसके विपरित है जो हमे प्रतिदिन महिलाओं के प्रति होने वाली आपराधिक घटनाओं, हिंसाओं,और पुरुषों से कमतर समझने की सोच में परिलक्षित होती है ।
विचारणीय यह है की प्रतिदिन कोख में बच्चियों को मारने या जन्म लेने के बाद किसी नाली या झाड़ियों में पटक देने की घटनाओं में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा खुद ही शामिल होता है पुरुष मानसिकता के साथ
तो बचपन से ही बच्चियों को दुर्बल, अबला होने का डर दिखा दिखा कर बड़ा करने वाली यही माताएं उन्हें संस्कारों के नाम पर सिर्फ चुप रहना सिखाती है ।
युवा होती बच्चियों से उनकी स्वतंत्रता और समानता का हक छीन कर उन्हे दोयम दर्जे का या सीधा सीधा कहें की पुरुष से कमतर होने का अहसास कराती है साथ ही हर हाल हर उम्र में पुरुष पर निर्भर रहना सिखाती है।
बच्चियों को जेवर कपड़ों का लालच देकर और दहेज देकर खरीदे गए वर को उनका सपनों का राजकुमार बता बता कर उन्हे बचपन से पंगु बना देती है ।
और फिर घरेलू हिंसा को एक साधारण सी बात मान कर अपनी ही बच्चियों को घुट घुट कर मरने को सही ठहराते हुए जीवन जीना भी यही महिलाएं सिखाती है
यह वही महिलाएं है जो दिन रात देवी की आराधना करती हुई स्वयं और स्वयं के परिवार के लिए सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य की कामना तो करती हैं लेकिन स्वयं की या किसी भी स्त्री की आंतरिक शक्तियों को पहचानने का कोई प्रयास नहीं करती हैं
और यदि कोई स्त्री जो स्वतंत्र, शिक्षित, शक्तिशाली है या होना चाहती है तो भी उसे अपने परिवार में आसानी से स्वीकार भी नहीं करती हैं।
तो ऐसे में यह नवरात्रि पर्व और नौ दिवस तक शक्ति की सिर्फ दिखावटी आराधना करना स्त्री को देवी का दर्जा तो दिला सकता है लेकिन एक इंसान के रूप में स्वतंत्रता, समानता और सम्मान नही दिला सकता है ।
अतः अब चाहिए की स्त्री स्वयं को पुरुष मानसिकता से बाहर निकाल कर स्त्री को वास्तविक शक्ति रूपा बनाने हेतु सच्ची
आराधना यानी सच्चे प्रयास करें, और स्त्री स्त्री का स्वयं सहयोग कर आगे बढ़ाएं इस नवरात्रि यही सबसे बड़ा संकल्प लें।
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक
कमांडेंट
आरएसी थर्ड बटालियन
बीकानेर।