राजस्थान में दलितों में आज भी जिंदा है शर्मनाक डायन प्रथा
राजस्थान में नवंबर माह में बूंदी जिले में एक 50 वर्षीय महिला की पेट दर्द की बीमारी का इलाज झाड़ फूंक जादू टोना करने वाले ढोंगी व्यक्ति से करवाने और फिर इलाज के नाम पर महिला के मुंह पर कालिख लगा कर, पेड़ से बांधना और उसे डायन बता कर बेरहमी से पीटने और दागने की शर्मनाक घटना घटित हुई है ।यह महिलाओं के साथ होने वाली शर्मनाक घटना दलितों में पाखंड अंधविश्वास और आज भी जादू टोने में विश्वाश की पराकाष्ठा का नतीजा है तो साथ ही अशिक्षा के चलते स्त्रियों के प्रति अमानवीय दृष्टिकोण भी है जो राजस्थान में अक्सर देखने सुनने और अखबारों में लगातार पढ़ने को मिलता है ।
साथ ही जब इस घटना में या इस तरह की अन्य घटनाओं में शामिल लोगों की जानकारी ली जाए तो अधिकाश sc और st के ही सदस्य हैं जो आज भी महिलाओं की बीमारी में उस पर डायन का साया बता कर उनसे बेरहम व्यवहार कर रहे हैं।विचारणीय बिंदु तो यह भी है कि इस प्रकार की घटनाओं में पुरुषों के साथ साथ पुरुष मानसिकता पालने वाली महिलाओं का भी बड़ा योगदान रहता है।राजस्थान में इसके उन्मूलन हेतु “राजस्थान डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2015 “लागू होने के बावजूद भी इस तरह की घटनाओं का आंकड़ा कम होने की बजाय बढ़ ही रहा है NCRB के डेटा के अनुसार2001 से 2021 तक करीब 3 हजार से ज्यादा महिलाओं को डायन बता कर उनकी हत्या कर दी गई है।
राजस्थान में दलितों में शिक्षा के अभाव और धार्मिक अंधविश्वाशः पाखंडों के चलते महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार वैसे भी बहुत ज्यादा है लेकिन डायन प्रथा का आज भी प्रचलन होना सभी के लिए शर्मनाक और सोचनीय विषय तो है ही और दलित समुदाय में इसका अस्तित्व लगातार बने रहना दलित महिलाओं की दुर्दशा को चित्रित करता है और बाबा साहेब के शिक्षा और विकास के सपने को छीन भिन्न करता है आज डायन प्रथा की घटनाओं का यदि विश्लेषण किया जाए तो सामने आता है कि एक तो शिक्षा का अभाव, दूसरा जादू टोना, कुरीतियों और पाखंडों का आज भी प्रचलन और स्त्री पुरुष दोनों में पुरुष मानसिकता यानी गरीब कमजोर पर जोर चलाने की मानसिकता के चलते महिलाओं को दोयम दर्जे का मानना यानी सारा पुरुषत्व महिलाओं पर ही निकालना होता है।
साथ ही यदि गहनता से देखा जाए तो अधिकांश महिलाएं जो इसकी शिकार हुई हैं वो महिलाएं, अकेली, विधवा, तलाकशुदा या बुजुर्ग महिला ही होती हैं या फिर जिस महिला के पास जमी, जायदाद,मकान आदि ज्यादा होगा और उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा बच्चे भी नहीं होंगे तो उसकी जमी जायदाद को हड़पने के प्रयास हेतु भी इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है । कभी कभी दो समुदाय की ईर्ष्या, प्रतिद्वंदता के चलते भी पुरुष सत्ता अपना जोर महिला पर इस तरह दिखाने का प्रयास करती है।
कभी कभी ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ने वाले सूखा अकाल ,महामारी, या कोई गहरी समस्या आदि का सीधा सीधा सम्बन्ध इस प्रकार की दूषित मानसिकता से जोड़ दिया जाता है और उसका कोप भजन दलित, कमजोर, वंचित महिला को भी झेलना पड़ता है
और किसी महिला को जान बुझ कर या बीमारी के नाम पर डायन घोषित कर या उस पर डायन का साया बता कर उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया जाता है। और इसमें शामिल सभी लोग( स्त्री, पुरुष )अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता को इस तरह पोषित कर अपना अभिमान संतुष्ट करते रहते हैं।
आज समाज में और खास तौर से दलित समाज में अति आवश्यकता है कि वो बाबा साहब के शिक्षा के सपने को अपना सपना बनाए और धार्मिक अंधविश्वाशः पाखंडों, जादू टोना, जैसी कुरीतियों से बाहर निकले और एक बार यह विचार अवश्य करे कि यह कुरीतियां या दूषित प्रथा दलितों में ही क्यों है ??? इसका कारण जानकार निवारण करना अतिआवश्यक है वर्ना विकास क्रम में दलित समाज वैसे भी बहुत पीछे है और यदि इन कुप्रथाओं से बाहर नहीं निकले तो हमेशा पीछे ही रहेंगे
शिक्षित विकसित लोगों को इन कुरीतियों से दलितों को बाहर निकालने हेतु समाज में अपना योगदान अवश्य देना चाहिए।
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक