महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की पैरोकार महान नायिकाएं
आजादी के उपरांत 26 नवंबर 1949 के दिन देश का संविधान बन कर तैयार हुआ सभी जानते हैं कि इसे बनाने में पूरे दो साल 11 महीने और 18 दिन लगे और इसमें कुल 299 लोगों का योगदान रहा है।
इस महान ग्रन्थ में जो हमारे देश के हर व्यक्ति को सम्मान से जीने का अधिकार प्रदान करता है उसमें बहुत सी महान नायिकाओं का भी योगदान रहा है जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में तो भाग लिया ही था साथ ही स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिकों के गरिमा मय, सम्मानपूर्ण जीवन उपलब्ध कराने हेतु संविधान सभा में अपने विकास शील विचारों के साथ प्रतिनिधित्व भी किया था और अपने विचारों को संविधान में स्थान दिलाने हेतु संघर्ष भी किया।
इन महान नायिकाओं के कार्यों और विचारों की ही देन है कि आज देश की हर महिला और देश के समस्त नागरिक स्वतंत्र भारत में सम्मानपूर्ण ,अधिकार पूर्ण स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं । इन महान नायिकाओं की संविधान सभा में संख्या 15 के करीब थी और इनके चयन में देश के हर प्रांत का प्रतिनिधित्व तो था ही साथ ही हर जाति ,धर्म ,उम्र ,और अनुभव का भी प्रतिनिधित्व था
इनके विचारों को यदि पढ़ा जाए तो महसूस किया जा सकता है कि यह कितनी प्रगतिशील विचारों की धनी थी और उनके विचारों की झलक ही आज संविधान में और प्रगति करती हर महिला में आसानी से देखी जा सकती है।
जैसे सुचेता कृपलानी जो पहली महिला मुख्य मंत्री तो थी ही इन्होंने सभा में महिलाओं के अधिकारों के साथ साथ देश के पहले राष्ट्रीय ध्वज को बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी वहीं सरोजनी नायडू जो स्वयं पहली राज्य पाल थी उन्हीं की बदौलत आज महिलाओं को मताधिकार प्राप्त हुआ है दक्षिणायनी वेलायुद्धन दलित महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली ग्रेजुएट महिला तो थी ही साथ ही दक्षिण में ऊपरी भाग के वस्त्र पहनने के लिए संघर्ष करने वाली पहली महिला भी थी यह जाति गत आरक्षण का विरोध करती थी लेकिन जाति व्यवस्था को समाप्त करने की बात सभा में पुरजोर तरीके से रखी थी
बेगम कुदसिया एजाज रसूल इकलौती मुस्लिम महिला सदस्य जिन्होंने धर्म आधारित पृथक निर्वाचक मंडल का विरोध किया लेकिन अल्प संख्यकों के न्याय ,अधिकार ,सम्मान की पैरवी की थी
हंसा जीव राज मेहता जिन्होंने सर्व प्रथम लैंगिक समानता की ,मानव अधिकार के साथ साथ अंबेडकर जी के हिन्दू कोड बिल का समर्थन किया और महिलाओं के तलाक के अधिकार की पक्ष धर बनी साथ ही संविधान की प्रस्तावना बनाने में मुख्य भूमिका निभाई राजकुमारी अमृत कौर जो पहली स्वास्थ्य मंत्री थी और आज की एम्स संस्था इन्हीं की देन हैं इन्होंने पहली बार समान नागरिक संहिता की पैरवी की थी
विजय लक्ष्मी पंडित जहां महिला आरक्षण, अल्प संख्यकों के अधिकार और स्कूली शिक्षा में सुधार की बात करती है
वहीं दुर्गा बाई देश मुख जिन्होंने स्वयं बाल विवाह का दंश झेला और उसको अस्वीकार कर हिन्दू कोड बिल यानि महिलाओं के संपति के अधिकार, तलाक के अधिकार को सपोर्ट किया और सभा में इनकी पुर जोर पैरवी भी की साथ ही सभा में दिव्यांग ,अनाथ, कमजोर को विशेष प्रोत्साहन की बात रखी थी
कमला चौधरी एवं मालती देवी जी जहां महिलाओं की शिक्षा अधिकार, विकास की पैरवी करती है,,
वहीं लीला रॉय जी ने बच्चियों के लिए सेल्फ डिफेंस, और युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट को महत्वपूर्ण बताया और इसके लिए कार्य भी किए अम्मू स्वामीनाथन जी जिन्होंने स्वयं जातिवाद का दंश झेला था उन्होंने मौलिक अधिकारों के साथ साथ हर प्राणी के साथ समान और सम्मानजनक व्यवहार की बात को सभा के सामने रखा ताकि किसी के साथ भी दुर्व्यवहार और छुआ छूट नहीं हो
रेणुका राय जी की बदौलत आज महिलाओं के श्रम का उचित मूल्य उन्हें प्राप्त हो रहा है और एनी मास्करेन जी ने देश की एकता ,संगठन के साथ साथ संसाधनों और सत्ता के विकेंद्रीकरण को आवश्यक बताया, पूर्णिमा बनर्जी ने हिंदू कोड बिल का समर्थन करते हुए महिलाओं के सभी अधिकारों को जरूरी बताया और पैतृक संपति के हक को वाजिब बताया
इस प्रकार सभी महिलाओं की सक्रियता, दूरदर्शिता, और अथक मेहनत और उस समय की पुरुष मानसिकता से संघर्ष करते हुए भविष्य के देश की नींव को मजबूत बनाने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई जिसकी बदौलत आज महिलाएं सम्मान और समस्त अधिकार प्राप्त कर स्वतंत्रता से भरा जीवन जी रही हैं।
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक
कमांडेंट
थर्ड RAC batalion
बीकानेर।