महिलाओं से कार्यस्थल पर भी जरूरी है सम्मान एवं सुरक्षा युक्त व्यवहार
कार्यस्थल पर यौन शौषण (निवारण, निषेध ,प्रतितोष) अधिनियम 2013 के लागू हुए आज दस वर्ष से अधिक समय होने के उपरांत भी आज तक इस कानून की जानकारी सभी महिलाओं को नहीं है।
इसमें बनाई गई आंतरिक परिवाद समिति, स्थानीय परिवाद समितियों तक पीड़ित महिलाओं की पहुंच नहीं है और न ही कार्यस्थल के नियोक्ता, नियोजक या सेवा प्रदाताओं द्वारा इस कानून के माध्यम से महिलाओं को सम्मान एवं सुरक्षा उपलब्ध करवाया जाना आज भी स्वत संचालित नहीं हो पा रहा है
इस कानून के माध्यम से महिलाओं के सम्मान एवं सुरक्षा को बनाए रखने हेतु सुप्रीम कोर्ट की पीठ के मुख्य न्यायधीश बीवी नाग रत्ना, एवं एन. कोटेश्वर सिंह द्वारा राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देशित किया है कि शीघ्र से शीघ्र इस कानून की पालना हेतु जिलों में नोडल अधिकारी नियुक्त कर कानून की पालना हेतु आईसीसी और एल सी सी समितियों का गठन कर निर्बाध तरीके से संचालित किया जाए ।
यह कानून जो विशाखा गाइड लाइन के द्वारा देश में 2013 में लागू किया गया था वह एक संघर्षशील महिला आंगनबाड़ी कार्यकर्ता (साथीन) भंवरी देवी के संघर्ष का परिणाम था जो राजस्थान के बस्सी गांव में जाति विशेष के सामूहिक बाल विवाह को रुकवाने के प्रयास में और बाल विवाह निषेध अधिनियम की पालना करवाते हुए स्वयं गैंग रेप का शिकार हुई और न्याय के लिए वर्षों के लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप महिलाओं को उनके कार्य स्थल पर सुरक्षा, सम्मान, सहायता दिलाने में तो सफल रही है लेकिन स्वयं आज भी स्वयं पूर्ण न्याय के इंतजार बैठी है।
यह कानून जहां सरकारी महिला कर्मचारी /अधिकारी को तो कार्य स्थल पर यौन शोषण से बचाव उपलब्ध करवाता ही है वहीं प्राइवेट कार्य करने वाली महिलाओं जैसे घरेलू कर्मकार आदि को भी यौनशोषण से सुरक्षा और सम्मान दिलाने में महत्व पूर्ण है।
इस कानून के तहत महिलाएं अपने साथ होने वाले यौन शौषण को लिखित, मौखिक किसी भी तरह से सीमित के सामने रख कर न्याय की मांग कर सकती है और इसके तहत महिला को उसकी सुरक्षा के साथ साथ अवकाश तक का भी प्रावधान तो है ही साथ ही मानसिक, शारीरिक, आर्थिक हर्जाना प्राप्त करने का भी अधिकार है साथ ही इस तरह का अनुचित व्यवहार करने वाले व्यक्ति अर्थात् respondent के खिलाफ भी सीसीए नियमों एवम् भारतीय न्याय संहिता के तहत कारवाई का उचित प्रावधान भी है ।
लेकिन वर्तमान में महिलाओं की सभी समस्याओं का समाधान सिर्फ कानून या समितियां नहीं हो सकती है ।
आज जब महिलाएं घर से बाहर निकल कर बाहर सरकारी और प्राइवेट कार्य स्थल पर भी कार्य करने लगी हैं तो यह अति आवश्यक हो गया है कि उन्हें उनके कार्य स्थल पर सिर्फ सेलरी नहीं दी जाए बल्कि उनकी सुरक्षा और उनका सम्मान भी बनाए रखने का पूरा पूरा प्रयास किया जाए ।
यह नियोक्ता और प्रदाता की जिम्मेदारी तो है ही साथ ही कार्य स्थल पर कार्य करने वाले सभी स्त्री पुरुष साथियों की भी जिम्मेदारी है कि वह सभी को सम्मानजनक तरीके से देखे, आदर पूर्वक व्यवहार करें, यौन शोषण मुक्त माहौल बनाए, और संघर्षों में पीड़ित का साथ भी दें ।
महिला के साथ कार्य स्थल पर यौन शोषण की घटना वो भी साथी कार्यकर्ता से या किसी भी उच्च या निम्न पदाधिकारी द्वारा किया जाना एक शर्मनाक घटना तो है ही साथ ही यह घटनाएं सिर्फ एक महिला को नहीं बल्कि हर एक महिला को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, यह महिला को शारीरिक, मानसिक आघात के साथ साथ आर्थिक नुकसान भी पहुंचती है साथ ही उनके विकास के मार्ग को अवरुद्ध भी करती हैं।
अतः आज अति आवश्यक है कि पुरुष पुरुष मानसिकता से बाहर निकल कर महिलाओं को कार्यस्थल पर भी सम्मान और सुरक्षा उपलब्ध करवाने हेतु स्वयं भी प्रयास करें और कार्यस्थल को खुश नुमा ,सुरक्षित ,सम्मानजनक, और गर्व का विषय बनाए ताकि भविष्य में महिलाएं स्वयं के और देश के विकास में खुल कर सामने आएं और विकास में अपना पूर्ण योगदान दे सके और साथ ही कानूनी प्रक्रिया के बिना भी यौन शौषण मुक्त कार्य स्थल को विकसित किया जा सके ।।
सीमा हिंगोनिया