पितृसत्तात्मक मानसिकता: पुरुष और स्त्री के संबंधों में चुनौती
सीमा की कलम से ✒️
वर्तमान समय में जहां स्त्री और पुरुष समान रूप से शिक्षित, विकसित और सक्षम होने की दिशा में बढ़ रहे हैं और घर, परिवार, समाज, और देश की प्रगति में बराबर का योगदान दे रहे हैं, वहीं घर और समाज एक ऐसा स्थान है जहां पुरुष आज भी पितृसत्तात्मक मानसिकता को न चाहते हुए भी ढो रहा है।
आज स्त्री-पुरुष में रिश्तों के दरकने और सभी प्रकार के संबंधों (पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, या अन्य) के आसानी से टूटने का मुख्य कारण यही पुरुष मानसिकता है, जो पुरुष को उसके स्वाभाविक गुणों और उसकी जरूरतों की अभिव्यक्ति नहीं होने देती है, जो आज की जरूरत भी है यानी की पुरुष के स्त्रीचित गुण को आज भी बाहर निकलने से रोका जा रहा है।
सामाजिक विकास और लालन-पालन में अंतर
हर स्त्री और हर पुरुष के प्राकृतिक विकास क्रम में सभी गुण लगभग एक जैसे ही होते हैं। स्त्री में पुरुष गुण और पुरुष में स्त्री गुण (प्यार, प्रेम, स्नेह) अंतर्निहित होते हैं, सिर्फ जनन, प्रजनन, और उससे जुड़ी समस्त प्रक्रियाओं को छोड़कर। लेकिन सामाजिक विकास क्रम में एक स्त्री और पुरुष का लालन-पालन इस प्रकार किया जाता है कि पुरुष की संवेदनशील भावनाओं, मानसिक आवश्यकताओं, प्रेम-स्नेह की अभिव्यक्ति और आपसी संवाद की जरूरतों को विकसित होने से रोका जाता है।
पुरुषत्व की अवधारणा और उसके प्रभाव
आज के पुरुष की सबसे बड़ी समस्या तनाव और अवसाद है, जो दिल और दिमाग से जुड़ी बीमारियों का कारण भी है। पुरुषत्व की अवधारणा के चलते, वह स्वयं की और समाज की परिपाटी को चलाए रखने में विश्वास करता है, चाहकर भी वह अपने घर, परिवार, या अन्य स्त्रियों से संपर्क, संवाद, और संचार की कमी को बनाए रखता है, और इसे ही अपना पुरुषत्व मानता है।
समाज और संबंधों में सकारात्मक बदलाव की जरूरत
यदि किसी भी स्त्री से (जो उससे किसी भी तरह जुड़ी हुई है) उसके आपसी संबंधों में कोई दरार आ रही है, तो सबसे पहले पुरुष को पितृसत्तात्मक मानसिकता को दूर करना चाहिए। उसे स्त्री जैसी कोमल, निश्छल भावना के साथ स्वयं को परखना चाहिए, अपनी गलतियों को स्वीकारना चाहिए, और सामने वाले की कमियों को भी खुले, सकारात्मक, सहज, और सभ्य तरीके से संवाद के माध्यम से हल करना चाहिए।
बहुत आसान है स्त्री-पुरुष के रिश्तों को बनाए रखना, सही तरीके से चलाना, और समय के साथ प्रगाढ़ बनाना, यदि पुरुष अपने पुरुषत्व के गुणों के साथ-साथ स्त्रीत्व के गुणों को भी सहज ले, स्वीकार ले और आज की बदलती हुई स्त्री को समझ ले।
बहुत आसान सा है स्त्री में पुरुषत्व जगना, समय और जरूरतें, और परेशानियां उसे खुद ही वहां पहुंचा देती है और परिपूर्ण बना देती है, बहुत मुश्किल है पुरुष में स्त्रीत्व को विकसित करना, समाज, परिवेश और उसका अहंकार उसे परिपूर्ण होने से रोकता है।
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, कमांडेंट आरएसी बटालियन बीकानेर