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जीवन का फंडा
“”तुम कहां किसी पर निर्भर हो हे नारी ,,,,
हे नारी तुम तो खुद ही जननी ,अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी , सरस्वती और दुर्गा हो तो फिर यह भ्रम क्यों पाल रखा है की तुम किसी पर निर्भर हो ??????
आजकल हमारे चारों तरफ यहां तक की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महिला सशक्तिकरण का नारा बुलंद किया जा रहा है और इस हेतु अथक प्रयास भी किए जा रहे हैं और यह जरूरी भी है क्योंकि इस पृथ्वी लोक की दो बराबर की शक्तियों स्त्री और पुरूष में से आज महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है शिक्षा, समानता, स्वास्थ्य ,पोषण,रोजगार ,लिंग अनुपात और सुरक्षा आदि सभी बिंदुओं में महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं इस लिए इनके सशक्तिकरण के प्रयास किए जा रहे हैं।
परंतु यहां हम महिला की उन आंतरिक जन्म जात शक्तियों की चर्चा कर रहे हैं जो प्रकृति प्रदत्त होने के बावजूद महिला स्वयं भूल बैठी है या उसे इन्हे भूल ने पर मजबूर किया गया है
और सदियों से उसे अबला ,कमजोर ,असुरक्षित ,
परनिर्भर ,या परतंत्र होने की हीन भावना से ग्रस्त कर दिया गया ताकि उसे घर, गृहस्थी , और सेवा ,चाकरी तक सीमित रखा जा सके हालांकि आज परिवर्तन की बयार है पर उसकी गति बहुत धीमी है।
प्राचीन कालीन स्त्री जो पवित्र, विदुषी , स्वयंवरा , योद्धा , घर की प्रधान और मातृ सत्तात्मक मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती थी वो औरत आज स्वयं को ही
परनिर्भर,परतंत्र ,कमजोर
,असुरक्षित मानकर व्यवहार करती है ।
हे नारी सुनो !
शारीरिक रूप से तुम पुरुष से बहुत मजबूत हो क्योंकि तुम तो जननी हो !
तुम जो 9 माह शिशु को गर्भ में पालती हो , प्रसव की दर्दनाक पीड़ा को झेल कर वंश वृद्धि और प्रकृति को चलाती हो , शिशु को स्तनपान के जरिए अपना समस्त पोषण उसे प्रदान करती हो ,महावारी का दर्द सहन करती हो, तो तुम शारीरिक रूप से कैसे कमजोर हो सकती हो ???खुद ही एक बार सोचो !!
सुनो हे नारी!
मानसिक रूप से भी बहुत ज्यादा मजबूत तो तुम पहले से ही हो क्यूंकि तुम रो सकती हो , तुम माफ कर सकती हो , तुम भावनाएं व्यक्त कर सकती हो ,सहनशीलता और संयम तो तुम में कूट कूट कर भरा है
जब तक तुम्हारे साथ छल, दुर्व्यवहार , हिंसा की अति नही होती तब तक तुम बहुत सहन करती हो और सब कुछ सही होने की उम्मीद से खुद से भी मानसिक रूप से संघर्ष करती हो और तो और तुम मानसिक तनाव ,अवसाद में होने पर भी घर से बाहर रहने ,शराब, सिगरेट जैसे बुरे व्यसन नही पालती हो और परिस्थितियों से भागने की बजाय उन्हें सुधारने का पूरा पूरा प्रयास करती हो तो तुम कमजोर कैसे हो सकती हो ??
सामाजिक दृष्टि से भी तो अत्यधिक मजबूत हो
क्यों की तुम समाज में अकेली , विधवा , तलाक शुदा ,वृद्धा अवस्था, किसी भी संघर्ष पूर्ण स्थिति में रह कर भी स्वयं संघर्ष कर स्वयं के स्तर पर जीवन जीने की तुम्हारी जिजीविषा सभी को ज्ञात है और अकेले ही अपने दम पर अपने आपको और अपने बच्चों और परिवार को संभालना तुम्हे आत्म निर्भर ही तो बनाता है फिर कहां तुम किसी पर निर्भर हो ????
अपने हाथों से घर ,बाहर, कार्यालय , या कहीं भी तुम्हारा खुद से कार्य करना ,सुबह से शाम तक मशीन की तरह लगे रहना , दस हाथों वाली दुर्गा की तरह घर, परिवार ऑफिस, बच्चों , पीहर ,ससुराल ,समाज सभी को तुम कितना अच्छे से तो मैनेज करती हो यह तुम्हारी ही तो आंतरिक शक्ति है जो तुमने जन्म जात पाई है तो तुम कहां पर किसी पर निर्भर ,परतंत्र ,या कहां कमजोर हो ???
तुम तो स्वयं में सम्पूर्ण हो !
जबकि एक पुरुष से अपनी तुलना करो की वो अकेला रहना, तलाक शुदा या विदुर की स्थिति में ज्यादा दिन तक रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी समझाता है और उसका परिवार और समाज भी उसे इस अकेले अकेले रहने की स्थिति में बेचारा बेचारा मानकर जल्दी से जल्दी उसकी इस स्थिति को बदलने का प्रयास करता है वो वापस जल्दी से जल्दी किसी स्त्री को घर में लाना चाहता है यानी की वो एक स्त्री पर पूरी तरह निर्भर है पहले भी आज भी।
क्या एक पुरुष घर के सुबह से शाम तक के दैनिक कार्य , बच्चों का लालन पालन , साथ में बच्चों की शिक्षा भी , बच्चों और बुजुर्गों की भावनात्मक , मानसिक जरूरतों की पूर्ति कर पाता है???और घर और ऑफिस की एक साथ जिम्मेदारी खुशी खुशी और पारंगत रूप से निभा सकता है क्या ??? नही निभा सकता है । और यदि ऐसा कोई पुरुष करता है तो उसका % बहुत ही अत्यधिक कम ही होगा जो स्त्री की तरह सम्पूर्ण जिम्मेदारी खुशी खुशी निभा सके।
तो हे नारी !अपनी प्रकृति प्रदत्त जन्मजात शक्तियों को पहचानो और अपने आप को अबला दुर्बला ,असुरक्षित ,परनिर्भेर , परतंत्र जैसी विचार धारा से बाहर निकाल कर अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानो और पहले से अधिक मजबूत ,खुशमिजाज , स्वावलंबी आत्मनिर्भर , स्वतंत्र, ज्यादा से ज्यादा बनो और स्वयं भी सुरक्षित बनो और अन्य स्त्रियों को भी सुरक्षा उपलब्ध करवाओ ।।।।
सीमा हिंगोनिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक,
कमांडेंट ,आरएसी बटालियन बीकानेर,